रायगढ़। शहर के पुरानी बस्ती में रियासतकालीन जमाने से आस्था का प्रतीक माने जाने वाले रामगुड़ी पारा में रामनवमी पर्व यादगार मनाया गया। 123 साल पुराने राम मंदिर के गर्भगृह में विराजे राम दरबार की विशेष पूजा हुई। रामलला की महाआरती और भजन-कीर्तन के साथ श्रद्धालुओं ने फल और मिष्ठान बांटते हुए अपनी खुशी का इजहार किया।
पुरानी बस्ती में संकीर्ण गलियों के बीच बसा है रामगुड़ी पारा और घनी आबादी के बीच स्थापित है राम मंदिर। जानकारों की माने तो सन 1903 में इस मंदिर का निर्माण हुआ। राजशाही काल में निर्मित इस मंदिर की दीवारें अपने वैभव की कहानी खुद बयां करती है। अविभाजित मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ गठन के बाद भी अपने मूल स्वरूप के साथ आस्था का प्रतीक बने इस राम मंदिर में रामनवमी की सुबह से धार्मिक आयोजन का साक्षी बनने के लिए जनसैलाब उमड़ा रहा।
क्षेत्र के पूर्व पार्षद सुनील थवाईत ने बताया कि रामनवमी को अविस्मरणीय बनाने के लिए एक पखवाड़े पहले से ही छात्र समिति द्वारा तैयारी की शुरू कर दी गई थी। रामगुड़ी पारा को भगवा झंडे और तोरण के अलावे रंगबिरंगी विद्युत लाइटों से सजाया गया है। रामनवमी के पूर्वान्ह साढ़े 11 बजे विधि विधान से राम दरबार की विशेष पूजा-अर्चना हुई। अपरान्ह 12 बजे राम जन्मोत्सव मनाया गया। भक्तों को प्रसाद के रूप में धनिया मसाला, तरबूज, खीरा के साथ मिठाई बांटी गई। वहीं, राम मंदिर के ठीक सामने हनुमान मंदिर में खीर वितरण भी हुआ। जनक नंदिनी महिला मंडल ने भजन-कीर्तन कर रामनवमी पर्व को चार चांद लगा दिया।
पंडित अशोक मिश्रा बताते हैं कि ओड़िशा के पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर रामगुड़ी पारा में विराजित भगवान श्रीराम, सीता माता और लक्ष्मण भाई की मूर्ति भी ओड़िशा के महानीम की लकड़ी से निर्मित है। यही खासियत है कि राम दरबार के किसी भी प्रतिमा की न तो चमक फीकी हुई और न ही कभी कीड़ा लगता है।