Sunday, June 1, 2025

सिल्वर जुबली साल में अंतिम सांसे गिन रहा केआईटी कई साल से कर्मियों को वेतन के लाले पडे़

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रायगढ़। राजनीति और अव्यवस्था का गढ़ बना जिले का पहला इंजीनियरिंग कॉलेजसाल 2000 में स्थापित राज्य का एकमात्र शासन द्वारा प्रवर्तित इंजीनियरिंग महाविद्यालय किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जिसे केआईटी रायगढ़ के नाम से जाना जाता है। इस साल 2025 में अपनी रजत जयंती मनाने के बजाय आज अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है।
निर्धन छात्र-छात्राओं को इंजीनियरिंग शिक्षा के देने के लिए आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में शासन द्वारा खोला गया यह महाविद्यालय शासन की अनदेखी के कारण गंभीर वित्तीय समस्या का सामना कर रहा है। जहाँ कर्मचारियों को गत 3 वर्षों से वेतन नहीं मिला है तो ईपीएफ द्वारा देनदारी के कारण संस्था के समस्त बैंक खातों को चीज भी कर दिया गया है। बीते सत्र में इसे जीरो ईयर घोषित किया गया था यानी नए छात्रों को प्रवेश नहीं दिया गया था। वर्तमान में यहां 100 छात्र भी नहीं हैं। एक समय था जब एक एक सीट के लिए मंत्री से लेकर अधिकारियों की जैक लगती थी। एक भी सीट खाली नहीं रहती थी।
केआईटी एक समय रायगढ़ की शान था। जिले का पहला इंजीनियरिंग कॉलेज होने का तमगा भी इसी के पास है। संस्था को चलाने के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नेंस है। जिसके मुखिया उच्च शिक्षा मंत्री, सदस्य तकनीकी सचिव, जिला कलेक्टर और विधायक हैं। ऐसे बड़े-बड़े नामों के बावजदू भी कॉलेज की ऐसी स्थिति वास्तव में भयावह है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि केआईटी मरणासन्न स्थिति में पहुंच गया और यहां की कर्मचारी राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की गुहार लगा रहे हैं।
क्या है इसके पीछे के मुख्य कारण
इस संस्था का संचालन किरोड़ीमल पॉलिटेक्निक सोसायटी द्वारा संचालित किया जाता है जो एक शासकीय समिति है. इसके संचालक मंडल में राज्य के तकनीकी शिक्षा मंत्री अध्यक्ष एवं स्थानीय विधायक सांसद कलेक्टर प्रभारी मंत्री सदस्य के रूप में स्थापित हैं राज्य के तकनीकी शिक्षा विभाग एवं एआईसीटीई के बड़े अधिकारी भी इसके सदस्य हैं, संचालक मंडल देख के लगता है कि इससे प्रभावी मंडल पूरे राज्य में कहीं नहीं हो सकता,साथ ही साथ राज्य शासन द्वारा ही प्राचार्य की नियुक्ति की जाती है जो इस समिति के सचिव का कार्य भी देखते हैं द्य हर 6 माह में संचालक मंडल की बैठक का प्रावधान है परंतु यह बैठक पहले दो-तीन सालों में एक बार की जाती है अब कभी कभार। अभी पिछली बैठक को 3 साल होने को है इसी कारण प्राचार्य द्वारा शासन को अंधेरे में रख भ्रष्टाचार और मनमानी द्वारा संस्था का संचालन इस स्थिति का मुख्य कारण है।
क्या है केआईटी का इतिहास
बात है सन 1999 की है जब तत्कालीन विधायक एवं मध्य प्रदेश में मंत्री केके गुप्ता ने रायगढ़ में इंजीनियरिंग महाविद्यालय की स्थापना करने की सोची थी। मध्य प्रदेश शासन ने उस समय राज्य के समस्त तकनीकी संस्थानों को ऑटोनॉमस घोषित कर दिया था जिसके कारण रायगढ़ स्थित शासकीय पॉलिटेक्निक भी स्वायत्त हो गया था और उसी के संचालन हेतु शासन ने किरोड़ीमल पॉलिटेक्निक सोसायटी का गठन किया था जो आज केआईटी का संचालन कर रही है। सोसायटी ने स्थानीय मंत्री के निर्देशानुसार अपने को अपग्रेड करते हुए इंजीनियरिंग महाविद्यालय खोलने का निर्णय लिया और साथ ही साथ यह भी निर्णय लिया कि संस्थान का नाम परिवर्तित कर किरोड़ीमल पॉलिटेक्निक से किरोड़ीमल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी कर दिया जाए, संचालक मंडल के निर्णय अनुसार ।प्ब्ज्म् में नए कॉलेज खोलने का प्रस्ताव भेजा गया,जिसकी अनुमति मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री से ली गई। शासन ने यह भी निर्णय लिया कि संस्थान को वेतन अनुदान मिलेगा एवं अधो- संरचना व्यवस्था के लिए छात्रों की फीस द्वारा व्यवस्था करनी होगी। सन 2000 में केआईटी स्थापना के बाद एक बड़ा परिवर्तन हुआ छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और नई सरकार ने तकनीकी संस्थानों की स्वायत्तता का आदेश निरस्त करते हुए उन्हें पुनः शासन अधीन करने का निर्णय लिया। रायगढ़ का पॉलिटेक्निक जो अपग्रेड होकर इंजीनियरिंग हो चला था वह इस पचढ़े में फंस गया जिसके समाधान में पुनः पुराने पॉलिटेक्निक को शासनाधीन करते हुए नए जन्मे इंजीनियरिंग महाविद्यालय केआईटी रायगढ़ को शासन ने शासनाधिन न करते हुए इसी शासकीय सोसायटी से चलाने का निर्णय लिया जो आज भी संचालित हो रहा है।
बीओजी और प्राचार्य ने केआईटी को संकट में फंसाया
केआईटी पर संकट के बादल कैसे आए पर कॉलेज के स्टाफ एक स्वर में कहते हैं कि कॉलेज की स्थिति पेंडुलम जैसा होना है। कॉलेज ना ही सरकारी है और ना प्राइवेट। स्ववित्तीय शासन द्वारा प्रवर्तित कॉलेज की बोर्ड ऑफ गवर्नर (बीओजी) और यहां के पूर्व प्राचार्य आरएस तोमर ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। बीते 10 साल का ग्राफ देखेंगे तो पता चलेगा कि जैसे-जैसे फीस में बढ़ोत्तरी होती गई वैसे-वैसे छात्रों ने केआईटी में प्रवेश नहीं लिया। आज हालत यह है कि केआईटी में एक प्रतिशत भी प्रवेश नहीं हो रहा। बीओजी में प्रवेश संबंधित मंथन चलती है लेकिन हमेशा यही दलील दी जाती है कि इंजीनियरिंग से पूरे देश में युवाओं का मोह भंग हुआ है। इस कारण केआईटी भी इससे प्रभावित हुआ है। हालांकि जमीनी हकीकत यह है कि आजतक केआईटी में किसी भी कंपनी ने रोजगार देने के लिए कैंपस नहीं लगाया। अब अगर छात्र करीब 5 लाख रुपये खर्च कर इंजीनियर बनेगा और अंत में उसे 8 हजार तक की नौकरी मयस्सर नहीं होगी तो मोहभंग होना लाजिमी है। इसमें जिला प्रशासन और केआईटी के उच्च प्रबंधन की पूरी भूमिका है। हमने कई मौकों पर कहा कि केआईटी में जो सुविधाएं है उसका भरपूर प्रचार हो लेकिन जानकर केआईटी का प्रमोशन नहीं किया गया। जबकि अब कॉलेज के पास 13.26 करोड़ की नई सर्वसुविधायुक्त बिल्डिंग है। कुल मिलाकर शासन का 22 करोड़ से अधिक का इनवेस्टमेंट है। छात्रों का जब से टोटा हुआ तो जिला प्रशासन अपने काम में नई-पुरानी बिल्डिंग का उपयोग कर रही है। यहां के पूर्व प्राचार्य केआईटी को प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज कहते रहे। इनके इस बयान ने कॉलेज का सबसे ज्यादा बेड़ागर्क किया। पूरे शहर में केआईटी को लेकर नकरात्मक छवि बनी और निजी कॉलेजों ने इसका पूरा फायदा उठाया।
केआईटी और सीजीआईटी में समानता
मोदी की गारंटी के अंतर्गत शासन ने हर लोकसभा क्षेत्र में छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की स्थापना की जानी है इसी के तहत रायगढ़ में भी छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की स्थापना पॉलिटेक्निक रायगढ़ को अपग्रेड कर किया जाना है वर्तमान में पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास ना तो अतिरिक्त अधोसंरचना है ना तो अतिरिक्त निर्माण हेतु खाली जमीन है उसके बाद मानव संसाधन की कमी अलग, साथ ही साथ कहीं समय के साथ शासन प्रशासन के बदलने से इस संस्था का हाल भी केआईटी रायगढ़ की तरह ना हो जाए पर यदि शासन छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के लिए के आई टी रायगढ़ का पूर्ण अधिग्रहण कर ले तो केआईटी की करीब14 एकड़ की जमीन, दो भवन,एक वर्कशॉप, एक नव निर्मित हॉस्टल एवं प्रायोगिक उपकरण, फर्नीचर जैसे करोड़ों की अधोसंरचना का लाभ सीधे छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी को मिलेगा। साथ ही साथ वर्षों का अनुभव रखने वाले मानव संसाधन का उपयोग भी शासन कर सकती है।
ओपी चैधरी से है उम्मीद
छत्तीसगढ़ बनने के बाद रायगढ़ में पहली बार स्थानीय विधायक मंत्री बने है और वह भी ओपी चैधरी जैसा,जिन्हें वैसे भी वर्षों का प्रशासकीय अनुभव है साथ ही साथ शिक्षा के क्षेत्र में रायगढ़ को अग्रणी बनाने का सपना लेकर यह कार्य कर रहे हैं। ऐसे में केआईटी जैसा संस्थान उनकी प्राथमिकता में जरूर होगा और जैसा वह जाने जाते हैं मौके पर चैका मार कर वे इस समस्या का भी समाधान जरूर करेंगेद्य उमेश पटेल ने भी तकनीकी शिक्षा मंत्री रहते हुए इसके पूर्ण शासकीयकरण का प्रयास किया था उन्होंने संचालक मंडल से प्रस्ताव पारित कर शासन को भेज भी दिया था पर परिणीति से पहले शासन बदल गया, खैर अब भी देर नहीं हुई है और ओपी चैधरी से संस्था को उम्मीद भी है.उम्मीद करते हैं कि अपने 25 सालों में रायगढ़ की जिस संस्था ने हजारों इंजीनियर दिए उसके भी दिन फिर से फिरेंगे और यह इतिहास ना बनाकर गरीब बच्चों के भविष्य को निरंतर संवारता रहेगा

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