Thursday, March 13, 2025

हार नहीं हौसले की जीत जनादेश को सलाम करते हुए बानू ने निकाली आभार रैली हारजीत की राजनीति में नई परंपरा की शुरूआत

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रायगढ़। रायगढ़ के महापौर चुनाव में भले ही बानू लीलाधर खूंटे विजयी नहीं हुए, लेकिन उन्होंने जनता के दिलों में अपनी खास जगह बना ली। सबसे कम उम्र के निर्दलीय महापौर प्रत्याशी के रूप में उन्होंने ऑटो चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़कर अपनी अलग पहचान बनाई। छह दिग्गज नेताओं के मुकाबले, बिना किसी बड़े संसाधन के, केवल अपनी मेहनत और जनता के विश्वास के बलबूते उन्होंने एक प्रभावशाली चुनावी संघर्ष किया। बानू को 2,383 मत मिले, जो यह दर्शाता है कि जनता ने उनके विचारों को न सिर्फ सुना, बल्कि स्वीकार भी किया।
आम आदमी पार्टी और आशीर्वाद पैनल के प्रत्याशियों से अधिक मत प्राप्त कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि सच्चाई, निष्ठा और जनसेवा की भावना आज भी जनता के बीच प्रभावी है। बानू का चुनाव प्रचार अनोखा और प्रभावशाली रहा। सोशल मीडिया पर उनकी मुस्कुराते हुए सादगी भरी अपील -मैं बानू लीलाधर खूंटे, आप मुझे प्यार से बानू कहते हैंष् ने जनता के बीच गहरी छाप छोड़ी। बिना बड़े संसाधनों के, केवल अपनी मेहनत और साथियों के सहयोग से उन्होंने पूरे शहर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।
बानू ने की राजनीति में नई परंपरा की शुरुआत
बानू ने अपने पहले ही चुनाव में कुछ ऐसा किया, जो अब तक किसी हारे हुए प्रत्याशी ने नहीं किया था। चुनाव परिणाम आने के बाद, उन्होंने हार को खुले दिल से स्वीकारते हुए जनता के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए आभार रैली निकाली। यह पहली बार हुआ जब किसी पराजित महापौर प्रत्याशी ने जनता को धन्यवाद देने के लिए इस तरह का कदम उठाया। राजनीति में आमतौर पर विजेता अपनी जीत का जश्न मनाते हैं, लेकिन बानू ने हारकर भी जनता के प्रति अपनी निष्ठा और समर्पण को दर्शाया। बता दें कि पिछले दस वर्षों से बानू श्युवा संकल्पश् बैनर के तहत समाज सेवा कर रहे हैं। चुनाव ने उन्हें और अधिक मजबूत और परिपक्व बना दिया है। वे कहते हैं -हार-जीत लगी रहती है, लेकिन मैं वही बानू हूं, जो हमेशा जनता के लिए खड़ा रहेगा।
रायगढ़ ने इस चुनाव में सिर्फ एक युवा प्रत्याशी नहीं देखा, बल्कि भविष्य के एक युवा नेतृत्व की झलक भी पाई। बानू ने केवल चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि एक नई राजनीतिक सोच की नींव रखी जहां नेता सिर्फ जीतने पर नहीं, बल्कि जनता से जुड़े रहने के संकल्प के साथ आगे बढ़ते हैं। उनकी इस पहल ने रायगढ़ की राजनीति में एक नई परंपरा की शुरुआत कर दी है।

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