महापौर और पार्षद चुनाव सोज्झे जीतने वाली भाजपा में अब सभापति को लेकर रस्साकसी तेज हो गई है। संगठन की पहली पसंद कौशलेश मिश्रा पार्षदी हार चुके हैं। सुरेश गोयल, पंकज कंकरवाल, डिग्री साहू, पूनम सोलंकी, अशोक यादव, महेश शुक्ला जैसे कुछ नाम सामने आ रहे हैं। महेश शुक्ला भले ही पार्षद चुनाव जीत जाते हों पर उनकी छवि के कारण संगठन शायद तवज्जो दे। पूनम सोलंकी के दावे को खारिज अनुभव के नाम पर किया जा सकता है। पंकज 5 बार से लगातार जीत रहे हैं और नेता प्रतिपक्ष भी रह चुक हैं, सुरेश गोयल पूर्व में सभापति रह चुके हैं। अगर सुरेश को पार्टी पार्षदी तक रोकती है तो स्पष्ट है कि वर्ग विशेष के वोटर्स में छोटे चुनाव (जहां चेहरे काम करते हैं) में वह पार्टी के लिए चेहरा बने क्योंकि उनका वार्ड तो बड़े चुनावों में भाजपा का गढ़ बन जाता है। अशोक यादव दावा करेंगे तो उनके खिलाफ वही शक्तियां कार्य करेंगी जो पार्षदी में कर रहीं थी वहां हारने वाले यहां बदला ले सकते हैं क्योंकि यहां लोग नहीं, उनकी चलेगी।
कांग्रेस संगठन धराशायी, अपने बूते जीते पार्षद
बीते नगरीय निकाय चुनाव में 26 पार्षदों वाली कांग्रेस को इस बार 12 में ही संतोष करना पड़ा है। ये 12 पार्षद भी जो जीते हैं वो अपने दम पर जीते हैं इसमें संगठन का सहयोग ना के बराबर दिखता है। कांग्रेस संगठन धराशाही हो चुकी है, उसकी गुटबाजी खुलकर सामने आई। इस पूरे चुनाव में एक दो बड़े नेता मुंह दिखाकर चले गए। कोई भी जिम्मेदार नेता ने खड़े होकर चुनाव नहीं करवाया, जिस पर प्रभार था वह बाहर था। इसी तरह महापौर प्रत्याशी को कांग्रेस संगठन ने अकेला छोड़ दिया था। पार्टी शायद पहले ही अपनी हार मान चुकी थी लेकिन उनकी प्रत्याशी आखिरी पल तक अपने लिए कार्य करती रही। मतगणना में भी कांग्रेस संगठन के कुछ ही चेहरे दिखे जो हमेशा कार्यालय में इस चुनाव में मोर्चा संभाले थे।
. पंकज कंकरवाल, सुरेश गोयल, पूनम सोलंकी, अशोक यादव, डिग्री साहू जेपीजी सभापति के कई नाम, मच सकता है कोहराम
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