हफ्ते का मंगलवार दिन हनुमान जी को समर्पित किया गया है। इस दिन बजरंगबली की उपासना करने से साधक के सभी संकट दूर हो जाते हैं। मान्यता यह भी है इस दिन बजरंग बली को लड्डू मात्र भोग लगाने से आपके सभी संकट दूर हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा से शनि दोष, मंगल दोष के प्रभाव कम हो जाते हैं। ऐसे में विधिपूर्वक पूजा से जातक को कई तरह के लाभ हो सकते हैं। वहीं पूजन के दौरान कुछ खास मंत्रों के भी जप करना कल्याणकारी साबित हो सकता है। मान्यता है कि इन मंत्रों के जप से जातक को शक्ति, शांति, बुद्धि और ज्ञान में भी वृद्धि तो होती है, साथ ही साधक के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
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हनुमान जी के प्रभावशाली मंत्र
- ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट
इस मंत्र के जप से जातक अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और भय समाप्त होते हैं।
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- ॐ नमो भगवते हनुमते नमः
इस मंत्र के जप से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- ॐ महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते। हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये। नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा।
इस मंत्र के जप से जातक अपनी हर मनोकामना हनुमान जी से कह सकता है और वह पूरा भी हो जाता है।
- ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।
इस मंत्र के जप से जातक के सभी संकट एक पल में दूर जाते हैं।
- ॐ नमो हनुमते आवेशाय आवेशाय स्वाहा।
इस मंत्र के जप से कर्ज मुक्ति मिलती है और जातक के घर की दरिद्रता दूर होती है। इस साथ ही जातक को ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ भी करना लाभदायक है।
।।ऋणमोचन मंगल स्तोत्र।।
”मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा”।।
इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।