रायगढ़। नई दिल्ली में हुए वन नेशन-वन इलेक्शन के समिट में देशभर के सैकड़ों छात्रसंघ अध्यक्षों को बुलाया गया था, जिनमें से छत्तीसगढ़ से अटल बिहारी वाजपेयी वि वि के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष, वर्तमान भाजयुमो प्रदेश कार्यसमिति सदस्य शशांक पाण्डेय के साथ में 12 सदस्यीय टीम ने हिस्सा लिया।
शशांक पाण्डेय के साथ भूपेंद्र नाग, प्रखर मिश्र, अजय कंवर, आलिंद तिवारी, यश गुप्ता, नीतू कोठारी परमेश्वर वर्मा, प्रणम्य पांडेय, कोमल पटेल, आदि शामिल हुए।कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चैहान,त्रमनसुख भाई मंडावीया, धर्मेंद्र प्रधान, राष्ट्रीय मंत्री ओमप्रकाश धनकड़, सुरेन्द्र नागर, सुनील बंसल सहित देश भर से आए हुए छात्र नेताओं की उपस्थिति रही।
बैठक का विषय वन नेशन वन इलेक्शन के विषय को देश के कोने कोने में युवाओं तक पहुंचाना था, आगे शशांक ने बताया कि भारत में पहले आम चुनाव 1952 में हुए, जहां लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराए गए। यह परंपरा 1967 तक चली। परंतु 1968-69 में कई विधानसभाओं के समय से पहले अंग होने से यह समकालिकता टूट गई। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल के बाद अनुच्छेद 356 के प्रयोग से कई विधानसभाएं समय से पूर्व भंग की गई, जिससे एक साथ चुनावों की परंपरा टूट गई।
इसके उपरांत वन इलेक्शन से देश के बजट पर भी व्यापक पड़ेगा, एक आंकड़े के अनुसार 2019 लोकसभा चुनाव पर 60,000 करोड़ खर्च हुए, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 1.35 लाख करोड़ से अधिक था। एक वोट की औसत लागत 1,400 रही। लगातार चुनावों से भारत की ळक्च् का लगभग 1.5ः खर्च हो जाता है। हर साल शिक्षा, स्वास्थ्य और अधोसंरचना में लगने वाले बजट का एक बड़ा हिस्सा चुनावों में चला जाता है।
देश में सरकार को यदि हर साल चुनावों के कारण नीतिगत निर्णय लेने में बाधा हो, तो इसका प्रभाव दूरगामी होता है। योजनाएं लटकती हैं, घोषणाएं होती हैं पर अमल नहीं होता।
श्एक राष्ट्र, एक चुनावश् से सरकारों को पूरा कार्यकाल बिना किसी चुनावी बाधा के नीतियों को लागू करने का अवसर मिलेगा।
अनेक लोकतांत्रिक देशों जैसे साउथ अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम में एकसाथ चुनाव की प्रणाली अपनाई गई है, जिससे नीति क्रियान्वयन में तेजी और प्रशासनिक दक्षता मिली है। भारत, जो अपोपजइींतंज 2047 का लक्ष्य लेकर चल रहा है, उसे इस दिशा में साहसिक कदम उठाना ही होगा।
क्या है वन नेशन- वन इलेक्शन
यह केवल चुनावी सुधार नहीं है, यह भारत के लोकतंत्र को मजबूत करेगा ..1951-67 तक देश में और प्रदेश में एक साथ चुनाव होते थे 167 में हुए चुनाव में देश में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा उसके बाद 1971 में इंदिरा गांधी जी ने लोकसभा चुनाव के साथ सामकालिक चुनाव पद्धति को बाधित किया। भाजपा ने 2019 और 2024 के घोषणा पत्र में इसे शामिल किया। इसमें 50ः से अधिक राजनीतिक दलों से परामर्श कर सहमति ली गई। 100ः उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो से परामर्श लिया गया 175ः उच्च न्यायालयो के प्रधान न्यायाधीश से परामर्श लिया गया। अनेक समितियों से परामर्श लिया गया। इसमें बार बार चुनाव में होने वाले 4-7 लाख करोड़ देश के बचेंगे। यह पैसा देश के विकास स्वास्थ्य, शिक्षा और इन्फ्रास्ट्रकचर में लगना चाहिए ना की नेताओ के चुनावी रैलियों में।
एक राष्ट्र एक चुनाव पर दिल्ली में युवा नेताओं की वृहद बैठक छत्तीसगढ़ से 12 सदस्यीय टीम के साथ शामिल हुए शशांक
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