
कल निकलेगा रायगढ़ में बूढ़ादेव रथ यात्रा, 70 टन कांसे से 70 फिट की बूढ़ादेव प्रतिमा होगी स्थापित
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना व आदिवासी समाज के संयुक्त तत्वाधान में 25 फरवरी से पूरे छत्तीसगढ़ में बुढ़ादेव यात्रा के दूसरे चरण की शुरूआत हो गई है। प्रदेश के हर गांव मिटटी इकटठा करने के बाद अब कांसादान महाउदीम शुरू की गई है। इसके तहत हर एक घर से कांसा के बर्तन दान स्वरूप लिया जा रहा है ताकि उस बर्तन को पिघला कर उससे मूर्ति बनाई जा सके। छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल ने कहा कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति कही है तो वह छत्तीसगढ़ में है।
सभी मूल निवासी के डीएनए एक है और हम अपने पुरखा के डीएनए की पूजा करते है। हमारे पुरखा ही बुढ़ादेव है। बुढ़ोदव यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक यात्रा है यह अपने पुरखा को जानने और खोजने की यात्रा है। उन्होने कहा कि यहां सभी जाति एक साथ मिलकर काम करते रहे है और कभी जाति के नाम पर झगड़ा लड़ाई नही हुई लेकिन आज कुछ बाहरी लोग जाति को आपस में लड़ाने का प्रयास कर रहे है जिन्हे सबक सिखाया जाएगा।
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के उपाध्यक्ष डाॅ.अजय यादव ने कहा कि सभी क्षेत्रों में भले ही भाषा बोली अलग अलग हो सकता है लेकिन इनमें समानता है। वही सभी के कुल देवताओं में भी समानता है। राज्य के मूल संस्कृति को बचाने के लिए बुढ़ादेव यात्रा की शुरूआत की गई है। छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के जिला संयोजक रवि छत्तीसगढ़िया ने बताया कि रायगढ़ छेत्र बड़ा होने के कारण इस समय तीन रथ निकाला जा रहा है, पहला रथ आज से वार्ड नं 34 सरइबदर ठाकुर देव चौरा से निकाला जायेगा और रायगढ़ के सभी वार्ड को कवर करते हुवे सारंगढ़,सरिया बरमकेला,पुसौर को करते हुवे रायगढ़ में समापन करेगा।
दूसरा रथ खरसिया विधानसभा तरफ भ्रमण करेगा। तीसरा रथ धरमजयगढ़,लैलूंगा,तमनार,घरगोड़ा तरफ कवर करेगा। कांसादान के लिए जिले में संचालन हेतु जगह स्थापित की जाएगी। इसके अलावा कांसादान संग्रहण केन्द्र भी बनाएं जाएगें। गांव गांव तक पहुंचने वाले बुढ़ादेव यात्रा के रथ में कांसादान किया जा सकेगा। इसके अलावा 8 अप्रेल को बुढ़ा तालाब के पास स्टेडियम में आयोजित कांसा अरपन कार्यक्रम में भी कांसा दान कर सकेंगे। उन्होने बताया कि स्थापना स्थल में सभी दानदाताओं के नाम स्तंभ में अंकित किया जाएगा।
70 फीट होगी मुर्ति की उंचाई
कांसा को पिघलाकर बनाए गए मुर्ति की उंचाई 70 फीट होगी। यह मुर्ति रायपुर के बुढ़ादेव तालाब में स्थापित की जाएगी। कांसा दान में कांसा की थाली,लोटा,गिलास सहित अन्य बर्तन होगें। इसमें किसी भी तरह के लोहे या स्टील, अन्य का इस्तेमाल नही किया जाएगा। पारंपारिक अनुष्ठान बाद बैगा और सिरहा बुढ़ादेव के निर्माण के लिए मुर्तिकारों को सौंपेगें।
क्या है बुढ़ादेव यात्रा
छत्तीसगढ़ में आदि मान्यता में पुरखा को ही देवता के रूप में पूजने की परंपरा है। सभी समाजों में यह परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। कोई भी काम करने से पहले दुख हो या सुख सभी में पुरखों को याद कर उनका आर्शीवाद लिया जाता है। इसी मान्यताओं को जानने समझने के लिए बुढ़ादेव यात्रा की शुरूआत की गई। यात्रा के पहले चरण में हर गांव के देवस्थान से एक मुठठी मिटटी एकत्र की गई,जिसे बुढ़ा तालाब के बीचोबीच स्थित देव स्थान में चौरा बनाया गया। इसमें लाखों की तादाद में लोग साक्षी बने। अब छत्तीसगढ़िया संस्कृति के पुनस्र्थापना और अपने मूल धार्मिक-सांस्कृतिक झंडा बुलंद करने के लिए कांसादान की महाउदीम की शुरू की गई है।